पटना41 मिनट पहले
पटना में शिक्षा सम्मेलन
पटना के विद्यापति भवन में एआईडीएसओ की ओर से नई राष्ट्रीय शिक्षा नीति 2020 के खिलाफ पूर्वी भारत शिक्षा सम्मेलन का आयोजन किया गया। इस छात्र सम्मेलन में पूरे बिहार से बड़ी संख्या में छात्र शामिल हुए। इस अवसर पर DUTA एवं FEDCUTA की पूर्व अध्यक्ष डॉ. नंदिता नारायण ने कहा कि छात्रों और शिक्षा प्रेमियों की यह लड़ाई सिर्फ शिक्षा बचाने की लड़ाई नहीं है, बल्कि सभ्यता और इंसानियत बचाने की भी लड़ाई है।
पूर्वी भारत शिक्षा सम्मेलन
पूर्वी भारत शिक्षा सम्मेलन
‘नई शिक्षा नीति सरकारी शिक्षा को समाप्त कर रही है’
उन्होंने आगे कहा की देश में प्राथमिक शिक्षा से लेकर उच्च शिक्षा की बदहाली अपने चरम पर है। सरकार द्वारा शिक्षा बजट में कटौती एवं आवश्यक संसाधनों की कमी की वजह से देश में आज सार्वजनिक शिक्षा हांफ रही है। नई शिक्षा नीति-2020 बची-खुची सरकारी शिक्षा को भी समाप्त कर रही है। यह शिक्षा नीति शिक्षा के निजीकरण, व्यापारीकरण और साम्प्रदायीकरण की ब्लूप्रिंट के सिवा कुछ नहीं है।
कार्यक्रम में मौजूद छात्र और छात्रा
कार्यक्रम में मौजूद छात्र और छात्रा
छात्रों में पैदा करना होगा वैज्ञानिक दृष्टिकोण
वहीं, आईएएस एवं बिहार राज्य आपदा प्रबंधन अथॉरिटी के पूर्व उपाध्यक्ष व्यासजी ने कहा कि शिक्षा का काम छात्रों में तार्किक सोच तथा वैज्ञानिक दृष्टिकोण पैदा करना होना चाहिए, जबकि एनईपी-2020 में डार्विन के स्थापित सिद्धांतों को भी पाठ्यक्रम से हटाया जा रहा है। एचबीटीयू, कानपुर के एसोसिएट प्रोफेसर डॉ. ब्रजेश सिंह ने कहा कि नई शिक्षा नीति-2020 में शिक्षण संस्थानों की स्वायत्तता को खत्म कर शिक्षा के केन्द्रीयकरण के नाम पर सारा नियंत्रण केन्द्र सरकार अपने हाथों में ले रही है। शैक्षिक प्रशासन को समग्र रूप से केंद्रीकृत करने का सरकार का प्रयास शिक्षा के मामलों को पूरी तरह से निरंकुश तरीके से नियंत्रित करने की प्रवृत्ति को इंगित करता है।
सरकार ने शिक्षा का किया हैं निजीकरण व व्यापारीकरण
बीएचयू के भूतपूर्व प्रोफेसर डॉ. मो. आरिफ ने कहा कि एनसीईआरटी के जरिए हाल ही में सरकार ने स्कूलों के पाठ्यक्रम में कांट छांट की है। इसके पीछे सरकार की मंशा अवैज्ञानिक व अतार्किक सोच वाली ऐसी रोबोट पीढ़ी तैयार करने की है, जो वास्तविक साहित्य, विज्ञान, इतिहास और राजनीति से कोई संबंध न रहे। पटना कॉलेज के प्राचार्य डॉ. तरूण कुमार ने कहा कि देश के सामाजिक-सांस्कृतिक आंदोलन के महान मनीषियों ने वैज्ञानिक, धर्मनिरपेक्ष, जनवादी और सार्वभौमिक शिक्षा का सपना देखा था, लेकिन आजादी के बाद सरकारों ने इस पर ध्यान नहीं दिया। उल्टे सरकारों ने शिक्षा के निजीकरण, व्यापारीकरण, साम्प्रदायीकरण और केन्द्रीकरण की नीति को आगे बढ़ाने का ही काम किया।
बिहार के बाहर से आए छात्रों ने भी किया विरोध
सम्मेलन की अध्यक्षता करते हुए एआईडीएसओ के अखिल भारतीय महासचिव सौरव घोष ने कहा कि नयी राष्ट्रीय शिक्षा-2020 नीति का ही नतीजा है कि स्कूल-कॉलेजों और केन्द्रीय सहित सभी विश्वविद्यालयों में बेतहाशा फीस वृद्धि हो रही है। देशभर में स्थाई शिक्षकों के 11 लाख पद खाली पड़े हैं। छात्र सम्मेलन में पश्चिम बंगाल, झारखंड, उत्तर प्रदेश और बिहार के छह सौ से अधिक छात्र प्रतिनिधियों ने भाग लिया। छात्र प्रतिनिधियों ने सम्मेलन में पेश किये गये मुख्य प्रस्ताव के समर्थन में अपने विचार रखे।